श्रावण मास में शिवजी का जलाभिषेक किया जाता है। लेकिन ऐसे बहुत से लोग है जिन्हे नहीं पता कि जलाभिषेक करते समय कौनसी ख़ास बातों का ख्याल रखे। ऐसा माना जाता है कि जलाभिषेक से भगवान शिव प्रसन्न होकर भक्तों को मनचाहा वरदान देते हैं तो आओ जानते हैं कि शिवालय में जाते समय और जलाभिषेक करते समय किन बातों का ख़ास ख्याल रखे। अधिक जानकारी के लिए ज्योतिष से परामर्श करे।
भगवान शिव का जलाभिषेक करते समय कभी भी तुलसी पत्र नहीं चढ़ाया जाता हैं। इसी तरह ऐसी कई सामग्री है जो उन पर नहीं चढ़ाई जाती है इसमें शैव परंपरा का पालन किया जाता है। विष्णु को चढ़ने वाली कई सामग्रियां निषेध हैं।
जलाभिषेक सिर्फ शिवलिंग का किया जाता है लेकिन कई लोग वहां पर शिवलिंग के साथ-साथ गणेश, कार्तिक, गौरी आदि की मूर्तियों का भी जलाभिषेक कर देते हैं जो कि गलत है। सब मूर्तियों को सुबह स्नान कराने का अधिकार वहां नियुक्त पुजारी को ही है।
मंदिर में कभी भी पूजा या अर्चना करते वक्त उनका स्पर्श नहीं किया जाता है क्योंकि यह स्पर्श आपके लिए निषिद्ध है।
श्रावण मास में शिवजी का जलाभिषेक उचित मंत्रोच्चार के साथ ही किया जाता है। आप केवल शिव का अभिषेक करें, वो भी प्रति प्रहर में विप्रदेव के मंत्रोच्चारण के साथ हो तो उत्तम है।
भगवान शिव पर चढ़ाई गई सामग्री, द्रव्य, वस्त्र आदि पर सिर्फ पूजा अनुष्ठान करवाने वाले विप्र का अधिकार होता है। यह कि जो भी पंडित रुद्राभिषेक या अन्य पूजा अनुष्ठान करवा रहा है उस पर उसी का अधिकार होता है क्योंकि आपने तो उक्त सामग्री शिवजी को अर्पित कर दी है। अब उस पर आपका अधिकार नहीं रहा। कई लोग छोटे शिवालयों या घरों में जब रुद्राभिषेक करवाते हैं तो शिवजी को अर्पित की गई धोती दुपट्टा या अन्य सामग्री और माता पार्वती को अर्पित की गई साड़ी या श्रृंगार स्वयं ही रख लेते हैं।
शिवजी की पूर्ण परिक्रमा कभी नहीं करते हैं क्योंकि शिवजी पर जो जल चढ़ाया जाता है उसके बाहर निकलने की जो व्यवस्था है उसे गंगा माना जाता है और माता गंगा को कभी लांघा नहीं जाता है।
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